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मार्च, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सबकी कहानी कहती है कविता

 सबकी कहानी कहती है कविता बोलकर भी चुप रहती है कविता कविता आपकी आपके और दुनिया के बीच रहती है कविता आपके दिल से दुनिया का हाल कहती है कविता सुन्दर है बहुत ये दिल की सुन्दरता है, दिल का दर्पण है कविता लफ्जों में दिलकी जबान सुकूनो आराम है कविता कविता आपकी

चुन-चुन प्यार के मोतियों से माला पिरोई थी

चुन-चुन प्यार के मोतियों से माला पिरोई थी ..... विश्वास के धागे से आस संजोई थी .......... पर धागा टूट गया ......... एक एक मोती बिखर गया ...... मोती ऐसे बिखरे ... के बटोरे नहीं जाते ..... हाथ मैं रह गया विश्वासघाती धागा है ..... ये मेरे पास है क्यों ...? मोती जो मेरे अपने थे बिखर गए हैं..... मुझसे हैं दूर क्यों ....? ये विडम्बना है या संसार की रीत ..... वे मेरे मोती जिनसे थी प्रीत .... मेरे पास नहीं हैं .... जिस पर था विश्वास उससे कोई आस नहीं है ..... आखिर क्यों ...?

अब वो फुर्सत नहीं रही

अब वो फुर्सत नहीं रही बच्चे भी नहीं रह गए हम पर रंग और उमंग आज भी है जिन्दा सोचता हूँ वही बच्चा बनकर खेलूं होली बचपने और शैतानी के रंग से

करना है कुछ बड़ा

 करना है कुछ बड़ा अब नहीं रहना खड़ा इस भीड़ मैं इच्छाओं का निचोड़ क्या है ऐसे ही पड़े रहने का औचित्य क्या है दिखाई दे रहा है सब बस कदम बढ़ाने की देर है जिसका दम भरता है उसी पर मरना भी होगा गर नदी है तो किनारे भी होंगे झोली मैं आसमान के तारे होंगे उलझने दिमाग से निकाल दे आगे बढ़ना है नए कीर्तिमान गढ़ना है बात ये जहन मैं उतार दे खुद से खुद की पहचान ले तूं है कौन पहले ये जान ले तब जहान और आलम तुझे मानेगा विचारों की तेरे क़द्र वो जानेगा

नशा ही नशा

 उफ तेरा ख़याल नशा ही नशा, नशा ही नशा एक निगाह तेरी तड़प ही तड़प, तड़प ही तड़प हाय वो अदा सदा ही सदा , सदा ही सदा मुस्कान और एक इनायत तेरी फूल ही फूल , फूलों की बहार मुंह फेरे, चलते-चलते रुकजाना इन्तजार., इन्तजार और शायद इकरार

एक अद्भुत सा एहसास है

 एक अद्भुत सा एहसास है हर पल लगता खास है इसी रूमानियत मैं जीने को दिल करता है इसकी राह है लम्बी बस कयासों मैं ही गुजर है करनी पर क्या करें कुछ हो गया है अब उसी की माला है जपनी

मुझे है होश इतना कि बस तुम्हें याद रखता हूँ

मुझे है होश इतना कि बस तुम्हें याद रखता हूँ बरना हमें तो खुद की कोई खबर नहीं रहती  कुछ ख़ास लम्हों मैं तुम्हें ढूँढता हूँ मैं के चंद लम्हे पत्तियों पर ओस है रहती सुबह जैसी भी हो आखिर सुबह है कि सूरज उगता है तब  कि याद कैसी भी हो याद है आखिर यादों मैं है तूं रहती अगर रोता तो दिल से उतर जाती तूं इसलिए आँखों मैं अब नमी नहीं रहती मायूसियां बेताब हैं जब्द मैं लेने को अपनी कि मायूस होने को तेरी यादों से फुर्सत नहीं होती

न उलझ-उलझ न मोह मैं पड़

न उलझ-उलझ न मोह मैं पड़ चल निकल-निकल चल निकल-निकल ये जाल है ये धोका है, इसी ने अबतक रोका है अडजा अडजा, जा बढ्जा-बढ्जा ये फांस रहा , वो तांक रहा ये पाश मैं , वो बाट मैं मगन न हो , अगन रहे पिंजरे मैं भी , तड़पन रहे दायरे से,  बाहर आ इरादों के भी, पार जा मार दे डरको , गाड़ दे सबको आकाश देख , अमित रेखा ईंच सांस भर , मुट्ठियाँ भींच एक डगर बना अनोखी सी, आकाश गढ़ कुछ अपना सा

कभी खुशबु सी आती है

 कभी खुशबु सी आती है तो महक उठतीं हैं यादें छाजाती है सुनहरी सी वो एक अक्स उभरता है ये दिल मशरूफ रहता है उस लम्हे मैं अभी है वो पास जैसे कह रहा है कुछ ख़ास जो कभी कहा था उसने बस एक एहसास ही है बाकी जो हर रोज रहता है है चेहरे पर मेरे ख़ुशी वही जो तब तुम्हारे चेहरे पर भी थी है हर वो पल भी इस लम्हे जो तब जिया था तुम्हारे साथ क्या करूँ आती है अब अक्सर तुम्हारी याद

मेरा मौसम आगया है

 मेरा मौसम आगया है अब उस जकड़न से निजाद मिल गई हो गया हूँ आजाद फिरूं कैसे भी रात की गुनगुनी ठंडी सी राहत भरी हवा सुबह की खुशनुमा रौशनी मन को सकून देने वाला आलम लम्बी रातों की बात गई सी हो गई अब दिन बड़े होंगे यहाँ शाम होगी देर तक तो सुबह जल्दी हो गई हाँ मगर दोपहर मैं तपिश होगी बहुत आएगा पसीना पर जब मिल जाएगी छाँव और कोई हवा का झोंका ठंडक और सकून आ जाएगा

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