मुझे है होश इतना कि बस तुम्हें याद रखता हूँ

मुझे है होश इतना कि बस तुम्हें याद रखता हूँ
बरना हमें तो खुद की कोई खबर नहीं रहती 

कुछ ख़ास लम्हों मैं तुम्हें ढूँढता हूँ मैं
के चंद लम्हे पत्तियों पर ओस है रहती

सुबह जैसी भी हो आखिर सुबह है
कि सूरज उगता है तब 

कि याद कैसी भी हो याद है
आखिर यादों मैं है तूं रहती

अगर रोता तो दिल से उतर जाती तूं
इसलिए आँखों मैं अब नमी नहीं रहती

मायूसियां बेताब हैं जब्द मैं लेने को अपनी
कि मायूस होने को तेरी यादों से फुर्सत नहीं होती

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