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मंजिलें पूछती रहती हैं

मंजिलें पूछती रहती हैं, कब तू हासिल-ए-नसीब होगा? यही सवाल उसके जहन में दिन -ओ- रात रहता है,

लबों पर ख़याल ठिठक रहे हैं

मेरे लबों पर ख़याल ठिठक रहे हैं, ख़ुद से किये कुछ सवाल खटक रहे हैं, कलम में दम था, इजहार करने का, काग़ज़ों पर अल्फ़ाज़ बरस रहे हैं।

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