करना है कुछ बड़ा

 करना है कुछ बड़ा
अब नहीं रहना खड़ा
इस भीड़ मैं
इच्छाओं का निचोड़ क्या है
ऐसे ही पड़े रहने का औचित्य क्या है
दिखाई दे रहा है सब
बस कदम बढ़ाने की देर है
जिसका दम भरता है
उसी पर मरना भी होगा
गर नदी है तो किनारे भी होंगे
झोली मैं आसमान के तारे होंगे
उलझने दिमाग से निकाल दे
आगे बढ़ना है
नए कीर्तिमान गढ़ना है
बात ये जहन मैं उतार दे
खुद से खुद की पहचान ले
तूं है कौन पहले ये जान ले
तब जहान और आलम तुझे मानेगा
विचारों की तेरे क़द्र वो जानेगा

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