न उलझ-उलझ न मोह मैं पड़

न उलझ-उलझ न मोह मैं पड़
चल निकल-निकल चल निकल-निकल
ये जाल है ये धोका है, इसी ने अबतक रोका है
अडजा अडजा, जा बढ्जा-बढ्जा
ये फांस रहा , वो तांक रहा
ये पाश मैं , वो बाट मैं
मगन न हो , अगन रहे
पिंजरे मैं भी , तड़पन रहे
दायरे से,  बाहर आ
इरादों के भी, पार जा
मार दे डरको , गाड़ दे सबको
आकाश देख , अमित रेखा ईंच
सांस भर , मुट्ठियाँ भींच
एक डगर बना अनोखी सी, आकाश गढ़ कुछ अपना सा

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