मेरी कविताएं जिनकी शुरुआत अचानक ही वैचारिक प्रस्फुटन के साथ हो गई। हर मनोदशा में बिना कुछ छुपाए शब्दों में सब उजागर कर दिया है यहॉं। हालॉंकि कुछ कविताओं कि रचना नौसीखिए कि तरह जानबूझ कर भूमिका बनाए बिना ही की है पर लिखते समय यही अच्छा लगा इसलिए लिख डाली और कहडाली दिमागी उधेड़बून।
उफ तेरा ख़याल नशा ही नशा, नशा ही नशा एक निगाह तेरी तड़प ही तड़प, तड़प ही तड़प हाय वो अदा सदा ही सदा , सदा ही सदा मुस्कान और एक इनायत तेरी फूल ही फूल , फूलों की बहार मुंह फेरे, चलते-चलते रुकजाना इन्तजार., इन्तजार और शायद इकरार