संदेश

अक्तूबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ नहीं मौन

अब कुछ न कहुंगा,  खामोशी को समझ लेना,  दिल में क्‍या है,  आंखों से चख लेना.

मुझे तो बढ़ना है

 मुझे तो बढ़ना है, शिखर पर चढ़ना है, रास्‍ते की चिंता नहीं है, पैरों से जब चलना है, पैर न भी हो तो मन से चलूंगा, कितना भी ऊंचा हो शिखर, नत मस्‍तक उसे करुंगा, अब सोचना क्‍या है सिर्फ बढ़ना है, थक जाएं अगर पैर तो हौसले से आगे बढ़ना है। बढ़ना है, चढ़ना है, चलते रहना है।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लबों पर ख़याल ठिठक रहे हैं