एक पीढ़ी

धर्मेन्द्र त्रिपाठी
बच्चों की नानी ने,
बचपन की कहानी ने,
ज़िंदगी की रवानी ने,
दोस्तों के क़िस्सों ने,
झूठे और सच्चों ने,
किताबों के पन्नों ने,
स्कूल के बस्तों ने,
बड़े होने की ख़्वाहिशों ने,
संघर्ष और आजमाइशों ने,
प्यार भरी रातों ने,
कसमों और वादों ने,
मेरी एक पूरी तस्वीर बनाई है,
आज एक पीढ़ी पूरी ज़हन ने दोहराई है।
एक शख़्सियत पूरी हो गई,
एक कहानी शुरू हो गई।

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