मेरी कविताएं जिनकी शुरुआत अचानक ही वैचारिक प्रस्फुटन के साथ हो गई। हर मनोदशा में बिना कुछ छुपाए शब्दों में सब उजागर कर दिया है यहॉं। हालॉंकि कुछ कविताओं कि रचना नौसीखिए कि तरह जानबूझ कर भूमिका बनाए बिना ही की है पर लिखते समय यही अच्छा लगा इसलिए लिख डाली और कहडाली दिमागी उधेड़बून।
शब्दों में लिपटी जहन की बात काश जहन समझ ले शब्दों की ग़लतियां तो कभी भी सुधर जाती है्ं तर्क जहन के देते.. शब्दों भरे नहीं.. आखिर थी तो ये दिल की बात