तुम पढ़ते मन हमारा

तुम पढ़ते मन हमारा,
हम तुम्हारा मन पढ़ लेते,
यूं न रहते चुपचाप- चुपचाप,
काश एक दफ़ा हम मिल लेते।
हां, दूरियां हैं, फ़ासले हैं,
और न कभी दिल मिले हैं,
फिर ये क्या हुआ है?
जाने किसने मन छुआ है।
बैचेनी, इंतजार...
और यही सिलसिला बार-बार..
कभी प्यार,
कभी तक़रार,
पर किससे प्यार,
पर किससे तक़रार,
बिन बातों का सिलसिला,
बिन सिलस‍िले की बातें।
रोज झलक भरा दिन,
रोज ख्‍़वाब भरी रातें।
कभी आग़ाज़,
कभी अंज़ाम ।
इंतहा कुछ - कुछ,
कुछ- कुछ वीराना।
रात से दिन,
दिन से रात।
वही हक़ीक़त,
वही अफ़साना...

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